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प्रति॒ स्पशो॒ वि सृ॑ज॒ तूर्णि॑तमो॒ भवा॑ पा॒युर्वि॒शो अ॒स्या अद॑ब्धः। यो नो॑ दू॒रे अ॒घशं॑सो॒ यो अन्त्यग्ने॒ माकि॑ष्टे॒ व्यथि॒रा द॑धर्षीत् ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

prati spaśo vi sṛja tūrṇitamo bhavā pāyur viśo asyā adabdhaḥ | yo no dūre aghaśaṁso yo anty agne mākiṣ ṭe vyathir ā dadharṣīt ||

पद पाठ

प्रति॑। स्पशः॑। वि। सृज॒। तूर्णि॑ऽतमः। भव॑। पा॒युः। वि॒शः। अ॒स्याः। अद॑ब्धः। यः। नः॒। दू॒रे। अ॒घऽशं॑सः। यः। अन्ति॑। अग्ने॑। माकिः॑ ते॒। व्यथिः॑। आ। द॒ध॒र्षी॒त्॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:4» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:23» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राज विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् राजन् ! आप (तूर्णितमः) अत्यन्त शीघ्रकारी होते हुए (स्पशः) अत्यन्त स्पर्श करने अर्थात् मुँह लगनेवालों का (वि, सृज) त्याग करो, और (अस्याः) इस (विशः) प्रजा के (अदब्धः) नहीं मारने और (पायुः) पालन करनेवाले (प्रति, भव) होओ (यः) जो (अघशंसः) पाप की प्रशंसा करनेवाला चोर (नः) हम लोगों के (दूरे) दूर देश में वा (यः) जो (अन्ति) समीप में वर्त्तमान हो वह (ते) आपको (व्यथिः) पीड़ारूप (माकिः) मत (आ, दधर्षीत्) ढीठ हो ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! आप उत्तम गुणों को ग्रहण करके और प्रजा का पालन करके जो दूर और समीप में वर्त्तमान डाकू आदि दुष्ट पुरुष उनका नाश करो, जिससे सब को सुख हो ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजविषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! त्वं तूर्णितमस्सन् स्पशो विसृज। अस्या विशोऽदब्धः पायुः प्रति भव योऽघशंसो नो दूरे योऽन्ति वर्त्तेत स ते व्यथिर्माकिरादधर्षीत् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रति) (स्पशः) स्पर्शकान् (वि) (सृज) (तूर्णितमः) अतिशीघ्रकारी (भव) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (पायुः) पालकः (विशः) प्रजायाः (अस्याः) (अदब्धः) अहिंसकः (यः) (नः) अस्माकम् (दूरे) (अघशंसः) पापप्रशंसकस्तेनः (यः) (अन्ति) समीपे (अग्ने) विद्वन् राजन् (माकिः) (ते) तव (व्यथिः) पीडा (आ) (दधर्षीत्) धृष्णुयात् ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे राजंस्त्वं शुभान् गुणान् गृहीत्वा प्रजाः सम्पाल्य ये दूरसमीपस्था दस्यवस्तान् हिन्धि यतस्सर्वेषां सुखं स्यात् ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! तू उत्तम गुण ग्रहण करून प्रजेचे पालन करून समीप व दूर असलेल्या दस्यू इत्यादी दुष्ट पुरुषांचा नाश कर. ज्यामुळे सर्वांना सुख मिळेल. ॥ ३ ॥